बहुत समय पहले की बात है। एक दूरस्थ राज्य था जिसका नाम सूर्यनगर था। इस राज्य पर राजा अदित्य राज करते थे। वे पराक्रमी, न्यायप्रिय और प्रजापालक थे। उनका साहस युद्धभूमि में बेमिसाल था और उनका हृदय प्रजा के लिए दया से भरा हुआ था।
लेकिन इस राज्य की असली शोभा थी उनकी रानी, रानी दिव्या। दिव्या अपार सुंदरता की प्रतिमूर्ति थीं। उनकी आँखें मानो समुद्र की गहराइयों जैसी थीं और उनका चेहरा सुबह के सूरज की तरह चमकता था। किंतु उनकी असली पहचान उनकी बुद्धिमत्ता थी। वे विद्या, राजनीति, कूटनीति और कला – सबमें निपुण थीं।
रानी दिव्या हमेशा राजा अदित्य के साथ दरबार में बैठतीं और जब भी कोई कठिन निर्णय सामने आता, तो उनकी बुद्धि ही राज्य को दिशा देती।
एक बार की बात है, पड़ोसी राज्य का राजा सूर्यनगर पर आक्रमण की तैयारी करने लगा। उसकी सेना विशाल थी और सूर्यनगर की सेना संख्या में कम। राजा अदित्य चिंतित हो उठे। उन्होंने युद्ध परिषद बुलाई। सब मंत्री भयभीत थे और कोई स्पष्ट उपाय नहीं सुझा पा रहा था।
तभी रानी दिव्या ने मुस्कुराते हुए कहा –
“महाराज, शक्ति केवल तलवार की धार में नहीं होती, बल्कि बुद्धि की धार में भी होती है। हम युद्ध को टाल सकते हैं और बिना खून-खराबे के विजय पा सकते हैं।”
राजा अदित्य ने आश्चर्य से पूछा – “कैसे, रानी?”
रानी बोलीं – “पड़ोसी राज्य का राजा लोभ और अहंकार से ग्रसित है। यदि हम उसे यह विश्वास दिला दें कि सूर्यनगर में कोई गुप्त खजाना छिपा है और वह खजाना उसे सौंपा जा सकता है, तो वह युद्ध के बजाय समझौते के लिए आगे आएगा। हम उसे एक स्वर्ण-पात्र में साधारण पत्थर सजाकर देंगे। उसके लोग उसे खजाना मानकर प्रसन्न होंगे और हमारी प्रजा युद्ध की भयावहता से बच जाएगी।”
राजा अदित्य को योजना उचित लगी। उन्होंने रानी की सलाह मानी। अगले ही दिन दूत भेजकर पड़ोसी राजा से शांति संधि का प्रस्ताव रखा गया। रानी की बुद्धिमानी से तैयार किया गया “खजाना” उपहारस्वरूप दिया गया। पड़ोसी राजा उस छलावे को असली मान बैठा और युद्ध टल गया।
इस घटना के बाद प्रजा ने रानी दिव्या को “बुद्धिमत्ता की देवी” कहना शुरू कर दिया। लोग कहते –
“राजा अदित्य हमारी ढाल हैं और रानी दिव्या हमारा मार्गदर्शन।”
समय बीतता गया। सूर्यनगर समृद्ध होता गया। किसान, व्यापारी और सैनिक – सभी सुखी थे। रानी का यह मानना था कि राज्य की असली शक्ति उसकी प्रजा होती है। वे अक्सर राजमहल से निकलकर गाँवों में जातीं, लोगों से मिलतीं और उनकी समस्याएँ समझतीं। वे स्त्रियों को शिक्षा के लिए प्रेरित करतीं, बच्चों को विद्या के महत्व के बारे में बतातीं और बुजुर्गों का सम्मान करतीं।
राजा अदित्य को भी यह बात अच्छी तरह समझ आ चुकी थी कि उनका साम्राज्य केवल उनकी तलवार पर नहीं, बल्कि रानी दिव्या की बुद्धिमत्ता पर भी टिका हुआ है।
एक दिन राजा ने दरबार में घोषणा की –
“मेरे राज्य की सबसे बड़ी शक्ति मेरी रानी है। उसकी सुंदरता ने मेरे जीवन को रोशन किया और उसकी बुद्धि ने मेरे राज्य को अजेय बना दिया। आज से रानी दिव्या का नाम मेरे साथ इतिहास में सदा अमर रहेगा।”
प्रजा ने जयकार की –
“राजा अदित्य की जय! रानी दिव्या की जय!”
और इस प्रकार सूर्यनगर की गाथा सदियों तक सुनाई जाने लगी, जहाँ एक राजा का पराक्रम और एक रानी की बुद्धिमत्ता मिलकर पूरे राज्य को स्वर्णयुग में ले गई।

Post a Comment